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बाबूजी की जीवनी
बाबू जगजीवन राम

जगजीवन राम - जिन्हें आम तौर पर बाबूजी के नाम से जाना जाता है एक राष्ट्रीय नेता स्वतंत्रता सेनानी, सामाजिक न्याय के योद्धा, दलित वर्गों के समर्थक, उत्कृष्ट सांसद, सच्चे लोकतंत्रवादी, उत्कृष्ट केंद्रीय मंत्री, योग्य प्रशासक और असाधारण मेधावी वक्ता थे। आपका व्यक्तित्व महान था आपने भारतीय राजनीति में आपने प्रतिबद्धता, समर्पण और निष्ठा के साथ अर्ध-शताब्दी तक कार्य किया। जून, 1935 में बाबूजी का विवाह इंद्राणी देवी से हुआ था। इंद्राणी देवी स्वयं एक स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षाविद थीं। उनके पिता डा. बीरबल एक प्रतिष्ठित चिकित्सक थे और उन्होंने ब्रिटिश सेना में कार्य किया था तथा 1889-90 में चीन-लुशई युद्ध में उनकी सेवाओं के लिए तत्कालीन वायसराय लार्ड लैंसडाउन द्वारा उन्हें विक्टोरिया मैडल से सम्मानित किया गया था। 17 जुलाई, 1938 को उनके पुत्र सुरेश कुमार और 31 मार्च, 1945 को पुत्री मीरा कुमार का जन्म हुआ। 21 मई, 1985 को सुरेश कुमार का निधन हो गया जिससे आपके माता-पिता को अत्यंत आघात पहुंचा।

जगजीवन राम का जन्म शोभी राम और वसंती देवी के यहां 5 अप्रैल, 1908 को बिहार के शाहाबाद जिले अब भोजपुर के एक छोटे से गांव चंदवा में हुआ था। जगजीवन राम को आदर्श मानवीय मूल्य और सूझबूझ  अपने पिता से विरासत में मिली जो धार्मिक प्रविृति के थे अैर शिव नारायणी मत के महंत थे। जब वे विद्यालय में ही थे तब उनके पिता का स्वर्गवास हो गया और उनका पालन-पोषण उनकी माता जी को करना पड़ा। अपनी माताजी के मार्गदर्शन में जगजीवन राम ने आरा टाउन स्कूल से प्रथम श्रेणी में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। जाति आधारित भेदभाव का सामना करने के बावजूद जगजीवन राम ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से विज्ञान में इंटर की परीक्षा सफलतापूर्वक उत्तीर्ण की और तत्पश्चात, कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक की परीक्षा पास की।

जगजीवन राम ने अनेक रविदास सम्मेलन आयोजित किए थे और कलकत्ता (कोलकाता) के विभिन्न भागों में गुरू रविदास जयंती मनाई थी। वर्ष 1934 में, आपने कलकत्ता में अखिल भारतीय रविदास महासभा और अखिल भारतीय दलित वर्ग लीग की स्थापना की। इन संगठनों के माध्यम से आपने दलित वर्गों को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल किया। आपका विचार था कि दलित नेताओं को न केवल समाज सुधार के लिए संघर्ष करना चाहिए बल्कि राजनीतिक, प्रतिनिधित्व की मांग भी करनी चाहिए। अगले वर्ष अर्थात 19 अक्तूबर, 1935 में बाबूजी रांची में हेमंड आयोग के समक्ष उपस्थित हुए और आपने पहली बार दलितों के लिए मतदान के अधिकार की मांग की।

बाबू जगजीवन राम ने स्वतंत्रता संग्राम में अत्यंत सक्रिय और महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। गांधीजी से प्रेरणा पाकर बाबूजी ने 10 दिसम्बर, 1940 को अपनी गिरफ्तारी दी। रिहा होने के बाद, आपने सविनय अवज्ञा आंदोलन और सत्याग्रह में सक्रिय रूप से भाग लिया। बाबूजी को इंडियन नेशनल कांग्रेस द्वारा आरंम्भ किए गए भारत छोड़ो आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए 19 अगस्त, 1942 को पुनः गिरफ्तार कर लिया गया और बाबूजी का पांच दशक से भी अधिक का लंबा और उत्कृष्ट राजनीतिक जीवन था। आपने छात्र कार्यकर्ता और स्वतंत्रता  सेनानी के रूप में अपना सार्वजनिक जीवन आरंभ किया और 1936 में 28 वर्ष की अवस्था में बिहार विधान परिषद के मनोनीत सदस्य के रूप में विधायक बन गए। पुनः वर्ष 1936 में आप दलित वर्ग लीग उम्मीदवार के रूप में खड़े हुए। आपको 10 दिसंबर, 1936 को मध्य पूर्व शाहाबाद (ग्रामीण) निर्वाचन क्षेत्र से बिहार विधान सभा के लिए निर्विरोध निर्वाचित घोषित किया गया। वर्ष 1937 में, जब कांग्रेस सरकार का गठन हुआ तब बाबूजी को शिक्षा और विकास मंत्रालय में संसदीय सचिव नियुक्त किया गया। तथापि, 1938 में पूरे मंत्रिमंडल के साथ आपने भी अपने पद से त्याग पत्र दे दिया।

जगजीवन राम वर्ष 1946 में पुनः निर्विरोध निर्वाचित हुए और आपको 2 दिसम्बर, 1946 को श्रम मंत्री के रूप में अंतरिम सरकार में शामिल किया गया। इसके पश्चात, लगभग 31 वर्षों तक आप केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य रहे। 1937 से ही आपने इंडियन नेशनल कांग्रेस में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व बाबूजी कांग्रेस पार्टी में राज्य स्तर पर महत्वपूर्ण पदों पर रहे। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात आप पार्टी की धुरी बन गए और आप पार्टी कार्यकलापों और साथ ही देश के शासन के लिए अपरिहार्य बन गए। 1940 से 1977 तक वे अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सदस्य थे और वर्ष 1948 से 1977 तक कांग्रेस कार्यकारी समिति के सदस्य रहे। 1950 से 1977 तक आप केंद्रीय संसदीय बोर्ड  के सदस्य रहे। अपनी राजनीतिक कुशग्रता के कारण आप पंडित जवाहर लाल नेहरू और श्रीमती इंदिरा गांधी जैसे दिग्गज नेताओं के प्रिय थे।

 
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कापीराईट/2012 बाबू जगजीवन राम राष्ट्रीय प्रतिष्ठान