शिक्षा के अवसर
बाबूजी ने दलितों को शिक्षा प्रदान करने पर विशेष जोर दिया था। जब से, आप स्वाधीनता आन्दोलन में सक्रिय थे, आपने हरिजन बहुल गांवों में अनेक विद्यालयों और छात्रावासों की स्थापना की थी और विद्यार्थियों के लिए वजीफे की व्यवस्था की थी। सभी शैक्षणिक संस्थानों के दरवाजे दलितों के लिए खोल दिए गए। लाखों दलित विद्यार्थियों को शिक्षा मिलनी शुरू हो गयी थी।
अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने महत्वपूर्ण पद ग्रहण करना प्रारंभ कर दिया और समाज ने एक बड़ा और महत्वपूर्ण परिवर्तन देखा।
अस्पृश्यता का उन्मूलन
बाबूजी ने अस्पृश्यता विरोधी अधिनियम के अधिनियमन में महत्पूर्ण भूमिका निभाई जिसमें 1976 में संशोधन किया गया था और उसे सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 का नाम दिया गया था। बाबूजी के रेल मंत्री कार्यकाल के दौरान पूरे देश में रेलवे स्टेशनों पर पानी पिलाने के कार्य हेतु बाल्मिकियों की भर्ती इस दिशा में एक क्रांतिकारी कदम था।
शोषण के मामलों में कमी
केंद्र में पिता समान बाबूजी के रहने से आपके भय से लोग दलितों का शोषण करने का साहस नहीं करते थे। इससे शोषण के मामलों में कमी आई। अपने प्रभाव से आप किसी भी समय जातीय संघर्ष करा सकते थे। फिर भी आपने हमेशा संयम से काम लिया क्योंकि आप जानते थे कि ऐसी किसी कार्रवाई से अंततः दलितों का ही अहित होगा।
आपका उद्देश्य दलितों के लिए सम्मान का माहौल बनाना था और दलितों के लिए आपका यह संदेश था - ‘शिक्षा प्राप्त करो, आत्म-सम्मान पैदा करो, निर्भय रहो‘।
राजनीतिक प्रभुत्व
जब 1969 में, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का विभाजन हुआ, उस समय के सभी प्रमुख कांग्रेसी नेताओं ने एक पृथक समूह का निर्माण किया। जब बाबूजी ने कांग्रेस अध्यक्ष का पदभार संभाला, तब कांग्रेस नाजुक दौर से गुजर रही थी। आपका व्यापक अनुकरण करने वालों और सद्भाव के कारण ही 1971 के लोक सभा चुनावों में कांग्रेस ने 352 सीटें जीत कर जबरदस्त बहुमत प्राप्त किया। 18 मार्च, 1971 को आपने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया।
1975 में आपातकाल लगा दिया गया था। इस दौरान की गयी ज्यादितियों से आतंक का वातावरण बन गया था। विपक्ष के सभी नेता जेल में बंद थे। 1977 में जब अंततः चुनाव की घोषणा हुई, तब आपने अपने आप को चुनाव लड़ने में अक्षम पाया। इस राजनीतिक अनिश्चितता के दौरान बाबूजी ने लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए अपना पद छोड़ दिया। आपने मत्रिमंडल और कांग्रेस पार्टी से त्यागपत्र दे दिया और 2 फरवरी, 1977 को ’लोकतांत्रिक कांग्रेस का गठन किया’ तथा विपक्ष का नेतृत्व किया। आपके इस कार्य से देश में ऐसी लहर आई कि इस व्यापक जनलहर द्वारा पहली बार विपक्ष जनता पार्टी के रूप में केंद्र में सत्ता में आया। इसके बाद 1 मई, 1977 को बाबूजी ने लोकतांत्रिक कांग्रेस का जनता पार्टी में विलय कर दिया। 5 अगस्त 1981 को आपने कांग्रेस (जे) की स्थपना की और अंत तक इसके अध्यक्ष बने रहे।
हरित क्रांति
खाद्य और कृषि मंत्री के रूप में बाबूजी को 1967 के भीषण सूखे से देश को बचाने और इतिहास में पहली बार इसे खाद्यान्नों के मामले में आत्मनिर्भर बनाने का श्रेय प्राप्त है। आपने पीएल 480 की अपमानजनक शर्तों पर अमरीका से गेहूं का आयात करना बंद कर दिया। आपने ’हरित क्रांति’ की शुरूआत की। रिकार्ड उत्पादन की बदौलत भारत ने पहली बार खाद्यान्नों का निर्यात करना शुरू किया।
आपने न केवल इतिहास रचा वल्कि भूगोल भी बदल दिया
स्वतंत्रता के तत्काल पश्चात पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण कर दिया था और कश्मीर के एक बड़े भाग पर भी कब्जा कर लिया था। जिसे पाक अधिकृत कश्मीर के नाम से जाना जाता है।
1962 के भारत-चीन युद्ध में भारत की पराजय हुई। तत्कालीन रक्षा मंत्री ने इस पराजय की जिम्मेदारी लेते हुए त्यागपत्र दे दिया।
1965 का भारत-पाक युद्ध अनिर्णित रहा। यह युद्ध भरतीय भूभाग पर लड़ा गया।
1970 में जब बाबूजी ने रक्षा मंत्री का पद संभाला, तब भारतीय क्षितिज पर युद्ध के बादल मंडरा रहे थे। इस लिए, आपने तुरंत तैयारियां शुरू कर दी, जिनके वांछित परिणाम रहे। 3 से 16 दिसम्बर, 1971 तक हुए युद्ध में भारत ने पहली बार निर्णायक विजय हासिल की। पहली बार युद्ध भारतीय भूभाग पर नहीं, बल्कि पाकिस्तानी भूभाग पर लड़ा गया। भारत ने पाकिस्तान की हजारों एकड़ जमीन पर कब्जा कर लिया। लगभग एक लाख पाकिस्तानी सैनिकों ने हथियार और गोला-बारूद सहित भरतीय सेना के समक्ष आत्मसमपर्ण कर दिया और बांग्लादेश का जन्म हुआ।
युद्ध शुरू होने से पूर्व, एक विमान दुर्घटना में बचने के बावजूद बाबूजी जवानों का मनोबल बढ़ाने के लिए प्रत्येक सैन्य चैकी पर गए। विजय हासिल करने के बाद वह जवानों को धन्यवाद देने के लिए एक बार फिर उन चैकियों पर गए। आपने शहीदों के परिवारों तथा घायल हुए जवानों के लिए अनेक योजनाएं शुरू की। युद्ध से पूर्व बाबूजी ने दो वायदे किए थे। प्रथम पाकिस्तान के आक्रमण की स्थिति में उनकी सेना को पीछे धकेल दिया जाएगा और युद्ध पाकिस्तान में लड़ा जाएगा। पाकिस्तान की सेना को हमारी पवित्र मातृभूमि को दूषित करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। दूसारा, उसका जो क्षेत्र जीता जाएगा, उसे वापस नहीं किया जाएगा। रक्षा मंत्री के रूप में आपने पहला वायदा पूरा किया। दूसरा वायदा पूरा करने में शिमला समझौता आड़े आ गया।
जातीय मानसिकता
बाबूजी मात्र एक व्यक्ति नहीं थे, बल्कि वे सामाजिक परिवर्तन का प्रतीक थे। कई बार आप भारत के प्रधानमंत्री बनने के करीब थे। चूंकि 1977 में जनता सरकार के गठन में आपने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, इस लिए अधिकांश संसद सदस्य आपको प्रधानमंत्री बनाना चाहते थे। तथापि, कुछ शक्तिशाली लोगों की जातीय मानसिकता के कारण ऐसा नहीं होने दिया गया। भारत की जनता को अभी तक इसका अफसोस है। 1979 में, राष्ट्रपति श्री नीलम संजीव रेड्डी ने बाबूजी को अपना बहुमत सिद्ध करने के लिए आमंत्रित किया। लेकिन एक घंटे तक भी इंतजार किए बिना उन्होंने लोक सभा भंग कर दी। संविधान विशेषज्ञों द्वारा इस कृत्य पर प्रश्न उठाया गया क्योंकि अनावश्यक चुनावों से बचने के लिए सदन में बहुमत सिद्ध करने के लिए पर्याप्त समय दिए जाने के दृष्टांत हैं। स्पष्टतया, बाबूजी को भारत का प्रधानमंत्री बनने से रोकने की मंशा थी। इस प्रक्रिया में जातीय ताकतों ने भारत की जनता को अत्यंत क्षति पहुंचाई।
कुछ महत्वपूर्ण उपलब्धियां
1. राष्ट्रीय स्तर पर बाबूजी एकमात्र दलित स्वतंत्रता सेनानी थे।
2. स्वतंत्रता पूर्व युग में, कुछ लोग केवल देश की आजादी के लिए लड़ रहे थे, जबकि कुछ लोग केवल दलितों के अधिकारों के लिए लड़ रहे थे। बाबूजी उन अल्पसंख्यकों में से एक थे जो दोनों के लिए लड़ रहे थे।
3. वायसराय वेवेल की अंतरिम सरकार के 12 मंत्रियों में से बाबूजी कम उम्र के मंत्री थे और वे 1946 से 1986 तक राष्ट्रीय परिदृष्य पर छाए रहने वाले एकमात्र व्यक्ति थे।
4. जहां बाबूजी ने समाज के सभी वर्गों के लिए काम किया, वहीं आपने सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित लोगों की ओर अधिक ध्यान दिया।
5. बाबूजी ने कहा था - ‘जाति व्यवस्था और लोकतंत्र परस्पर विरोधी हैं।‘