आरक्षण का उपबंध इतनी आसानी से संविधान में शामिल नहीं हुआ। विरोध की जबर्दस्त अंतर्धारा थी। उस समय समर्थन जुटाने की जिम्मेदारी अंततोगत्वा बाबूजी, जो दलितों में सबसे प्रभावशाली एवं वरिष्ठ नेता थे, के कंधों पर आ पड़ी। अपनी अंतर्निहित बुद्धिमत्ता एवं दूरदर्शिता के कारण बाबूजी ने सर्वानुमति प्राप्त कर ली जिसके परिणामस्वरूप आरक्षण का उपबंध सम्मिलित हो पाया।
स्वतंत्रता के समय, केंद्र या राज्यों में कुछ ही अनुसूचित जाति के अधिकारी थे। तभी मुख्य मंत्री तथाकथित उच्च जाति से थे। तब भी बिना किसी कड़वाहट या तनाव के, बाबूजी ने उनसे आरक्षण लागू करने, हरिजन छात्रावास खोलने और हरिजनों के कल्याण तथा अस्पृश्यता के विरूद्ध अन्य योजनाओं को लगू करने का कार्य कराया। आपके राजनीतिक कद के कारण मुख्यमंत्रियों ने स्वयं उन्हें आरक्षण एवं कल्याण योजनाओं की क्रियान्वयन रिपोर्ट नियमित रूप से भेजी। दलित कल्याण संबंधी आपके सुझावों में बहुत प्रभाव होता था तथा इसे आदेश जैसा माना जाता था। उनके अथक प्रयास के कारण ही आज दलित अधिक जागरूक हैं, शिक्षित हो रहे हैं। तथा उच्च पदों पर पहुंचे हैं। 50 वर्षों से अधिक के आपके सतत संरक्षण से दलितों को साहस मिला एवं उन्हें प्रगति पथ पर अग्रसर होने में सहायता मिली।
1957 में, बाबूजी ने प्रोन्नति में आरक्षण का प्रावधान कराया। तब आप रेल मंत्री थे। आपके निर्णय का घोर विरोध हुआ। इस मामले को उच्चतम न्यायालय के समक्ष लाया गया जहां विरोधियों की हार हुई। तभी से प्रोन्नति में आरक्षण का प्रावधान अस्तित्व में आया।
संविधान में, आरक्षण का प्रावधान मात्र दस वर्षों के लिए किया गया था। बाबूजी के जबर्दस्त प्रभाव से इस अवधि को समय-समय पर बढ़ाया जाता रहा। जब भी आरक्षण के विरूद्ध आवाज उठी, आपने उसे अपने रुतबे एवं लोकप्रियता से दबा दिया। आपने यह सुनिश्चित किया कि आपने मंत्रालय में सभी आरक्षित सीटें भरी जाएं।
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